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कविता

धूप के पखेरू

देवेंद्र कुमार बंगाली


खो गए अँधेरे में
धूप के पखेरू।

हरे हुए, लाल हुए
हौसले मशाल हुए
चाँद के कटोरे से
टपक रहा
गेरू।

डालों पर थकी-थकी
सोई है सूर्य मुखी
आँखों के साये में
नींदों की जोरू।

घास-फूस के छाजे
लकड़ी के दरवाजे
मिट्टी के घर में
न गाय,
न बछेरू।

 


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